tag:blogger.com,1999:blog-5036274399071245559.post3558282764788358106..comments2023-10-11T20:40:55.679+05:30Comments on आपका पन्ना: असंवेदनशीलता की हदअनिल पाण्डेयhttp://www.blogger.com/profile/08537581524466402579noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-5036274399071245559.post-2988407634477123632010-07-11T22:09:29.924+05:302010-07-11T22:09:29.924+05:30अनिल भाई आपके आलेख में दोनों ही घटनाओं का जिक्र अं...अनिल भाई आपके आलेख में दोनों ही घटनाओं का जिक्र अंदर तक हिला देता है. लेकिन ये कोई नई बात नहीं है. पुलिस के अत्याचार और दमन की कहानी के इससे भी बडे-बडे दिल और दिमाग हिला देने वाले मामले हैं. आसान बात नहीं है कि पूरा छत्तीसगढ का आदिवासी इलाका एक दम से चंद ऐसे लोगों के लिए जान देने लगा जिन्हें नक्सलवादी कहा जाता है. आखिर क्यों पुलिस के दुश्मन बनें हैं नक्सली. यही, यही वो कारण है जिनके कारण पुलिस जन की नजर में अब शत्रु की तरह देखी जा रही है. आप इस बारे में और भी विस्तार से जानना चाहते हैं तो आप पुण्य प्रसून वाजपेयी की छत्तीसगढ में आदिवासियों पर पुलिसिया अत्याचार की रिपोर्ट पढिए है जिस पर उन्हें गोयनका पुरस्कार मिला है. आप देखेंगे कि आखिर पुलिस वाले हैं क्या.. बहरहाल एक अच्छे आलेख के लिए आपको बधाइयां...Asonu upadhyayhttp://vimarshupadhyay.blogspot.comnoreply@blogger.com