भविष्य में हिंदी का वर्चस्व कम से कम दक्षिण एशिया के क्षेत्रों में तो अवश्य ही रहेगा और इसका कारण है बहुत बड़े वर्ग का हिंदी भाषा जानना.
बीबीसी हिंदी |
इतना ही नहीं, मोबाइल कंपनियों ने अपने हैंडसेट्स में भारतीय भाषाओं को भी शामिल करना शुरू कर दिया है.
मीडिया सम्राट रूपर्ट मर्डोक जब भारत में अपना टीवी नेटवर्क शुरू करते हैं, तो वो भी हिंदी में. यह इस बात का इशारा है कि भारतीय जनमानस के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए हिंदी भाषा की सहायता बहुत ही ज़रूरी है.
वेब पत्रकारिता
जिस समय विश्व में इंटरनेट का पदार्पण हुआ उस समय जो डॉट कॉम कंपनियां उभरीं, उन्होंने अपना काम अंग्रेज़ी भाषा में शुरू किया, जबकि वेबदुनिया ने उस समय हिंदी पोर्टल शुरू किया.
अपने शैशव काल से लेकर आज तक इंटरनेट ने जो सीढ़ियां चढ़ीं हैं वो अपने आप में प्रतिमान हैं लेकिन जितनी प्रसिद्धि हिंदी भाषा की वेबसाइटों को मिलती है, उतनी किसी और को नहीं मिलती.
भारत में कोई भी वस्तु तब तक नहीं प्रचलित होती है, जब तक कि उसमें भारतीयता का पुट न सम्मिलित हो इसलिए हिंदी भाषा वो पुट है, जिसके बिना ख्याति संभव नहीं.
हमारे देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री अपना बधाई संदेश हिंदी में प्रसारित करते हैं क्योंकि हिंदी भाषा अपनत्व का बोध कराती है.
बीबीसी हिंदी और वेबदुनिया की वेबसाइटों को देखने वाले सबसे ज़्यादा लोग विदेशी हैं यानी वे भारतीय जो बाहर के देशों में बसे हैं. लगभग 80 प्रतिशत पेज इंप्रेशन तो उन्हीं से बनता है.
ऐसे में यह कहना कतई ग़लत नहीं होगा कि हिंदी भविष्य की भाषा है.
यदि समसामयिक गतिविधियों पर नज़र दौड़ाएंगे तो यह संभावना और भी ज़्यादा प्रबल होगी कि भविष्य में हिंदी का ही बोलबाला रहेगा.
सोमवार, 03 अप्रैल, 2006 को सर्वश्रेष्ठ हिंदी समाचार वेबसाइट बीबीसी हिंदी डॉट कॉम एवं बेवदुनिया डॉट कॉम में प्रकाशित मेरा लेख
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