सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

पिघलते ग्लेशियर्स : आशंका से अधिक विकराल होंगे महासागर



भविष्य में ग्रीनलैंड और अंटाकर्टिक की बर्फ पिघलने से आईपीसीसी की अनुमानित आशंका से कहीं अधिक विकराल हो जाएंगे महासागर। आने वाले वर्षों में समुद्र का जलस्तर अपेक्षा से कहीं अधिक बढ़ जाएगा। मंगलवार को खबर आई कि आर्कटिक क्षेत्र का मैजेस्टिक ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहा है। वहां गए वैज्ञानिकों ने दल जो तस्वीरें जारी की हैं, उसमें ग्लेशियर्स कम और पानी ज्यादा दिखाई दे रहा है। पर्यावरणविद इसके लिए इंसानों को जिम्मेदार मान रहे हैं। दरअसल ग्लेशियर्स का मामूली रूप से पिघलना और उनका आकार बदलना कुदरती प्रक्रिया का हिस्सा है। लेकिन जिस तेजी से पिछले एक दशक में यह पिघल रहे हैं, वो पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी के समान है। साल-दर-साल यह पिघलते जा रहे हैं, लेकिन उनके स्थान पर नए ग्लेशियर्स का निर्माण नहीं हो पा रहा है।

यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के अनुसंधानकर्ताओं ने अपने शोध में पाया है कि इंटर-गवर्नमेंट पैनल ऑन क्लाइमेटचेंज (आइपीसीसी) की चौथी मूल्यांकन रिपोर्ट में जो आंकड़े बताए गए हैं। समुद्री जलस्तर उससे कहीं ज्यादा बढऩे की उम्मीद है। यह शोध अपने आप में अनूठा है क्योंकि बर्फ पिघलने पर संगठित विशेषज्ञों के आंकड़ों को एकसाथ लेकर उसका विश्लेषण किया गया है। इसे गणितीय आधार पर बर्फ को पानी में तब्दील होने के फैलाव के आधार पर आंका गया है। अंर्टाकटिक और ग्रीनलैंड पर बिछी बर्फ की चादर पृथ्वी पर मौजूद ग्लेशियरों का 99.5 फीसदी है। इसके पूरा पिघलने से वैश्विक समुद्र का स्तर कमोबेश 63 मीटर तक ऊंचा हो जाएगा। चूंकि बर्फ की यह चादर ही समुद्र के जलस्तर को बढ़ाने में सबसे बड़ा योगदान देती है। इसी कारण भविष्य अनिश्चितता से भरा हुआ माना जा रहा है। ऐसे ही एक शोध में प्रोफेसर जानेथन बामबर और प्रोफेसर विली एस्पिनल ने बताया कि बर्फ पिघलने की स्थिति पर खासी अनिश्चितता है। उन्होंने बताया कि निकाले गए मीडियन के अनुसार वर्ष 2100 तक बर्फ की चादर पिघलकर समुद्र स्तर बढ़ाने में 29 सेंमंी बढ़ाने का काम कर सकती है। इसमें 5 फीसदी की संभावना यह भी है कि समुद्र स्तर अधिकतम 84 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है। कुछ अन्य सूत्रों से मिले आकड़ों के अनुसार सन् 2100 तक समुद्रस्तर एक मीटर तक बढऩा संभव है। महासागर का इतना विकराल रूप निश्चित रूप से मानव जाति के अस्तित्व के लिए खतरा साबित हो सकता है।

उल्लेखनीय है कि आइपीसीसी की रिपोर्ट में समुद्र स्तर में छह संभावित स्थितियों में 18 सेंटीमीटर से 59 सेंटीमीटर तक की ही बढ़ोतरी हो सकती है। शोध में यह बात भी सामने आई है कि दुनिया भर के वैज्ञानिक समूह इस बात को भी किसी एक कारण से स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं कि हाल के वर्षों में सैटेलाइट से मिले चित्रों और अन्य आंकड़ों के मुताबिक बर्फ की चादर में  कमी क्यों आई है। हालांकि, यह भी स्पष्ट नहीं है कि एक लंबे समय के परिवर्तन का नतीजा है या मौसम प्रणाली में अचानक आए परिवर्तनों का असर है। यह शोध विज्ञान पत्रिका नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित किया गया है।

बर्फ में दबे बदलाव के राज
हमारी धरती का दस फीसदी हिस्सा बर्फ से ढंका हुआ है। लेकिन अब यह बर्फ तेजी से पिघल रही है। फिनलैंड के ग्लेशियर की 2,000 साल पुरानी परतें भी बढ़ते तापमान की गवाही दे रही हैं। हिमालय के ग्लेशियर भी पिछले तीस सालों में काफी प्रभावित हुए हैं। गंगोत्री जैसी जगहों पर हिमनदों का पीछे खिसकना साफ देखा जा रहा है। यूरोप का सबसे बड़ा ग्लेशियर फिनलैंड में है, इसकी बर्फ की कुछ परतें तो दो हजार साल पुरानी है। लेकिन बढ़ता तापमान इस पूरे हिस्से को तहस-नहस कर सकता है। पर्यावरण विज्ञानी इस खतरे को रोकने के लिए ग्लेशियर की गहराई में झांक रहे हैं। बर्फ की परतें बता रही हैं कि बीती दो शताब्दियों में समय के साथ धरती ने तापमान में कैसे उतार चढ़ाव देखे।

बढ़ते तापमान और ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने की वजह से पूरा पर्यावरण चक्र गड़बड़ा रहा है। नदियां लबालब हो रही है, हल्की सी बारिश होने पर भी बाढ़ की नौबत आ रही है। कई इलाके सूखे का सामना कर रहे हैं। समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। इससे बांग्लादेश, मालदीव और पापुआ न्यू गिनी जैसे कई देशों के डूबने का खतरा खड़ा हो रहा है। हालात बड़े खतरे की तरफ इशारा कर रहे हैं।

बीते एक दशक में यह चेतावनी लगातार दी जा रही है कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए हो सकता है। भारत में हर व्यक्ति प्रति दिन औसतन 125 लीटर पानी इस्तेमाल करता है। अमेरिका में यह मात्रा करीब 550 लीटर है जो कि दुनिया में सबसे ज्यादा है। भारत दुनिया का वह देश है जो सबसे ज्यादा पानी जमीन से निकालता है। देश में करीब दो करोड़ कुएं हैं।

तापमान बढऩा है हिमपात की वजह!
इराक के लोगों ने पिछले एक सौ वर्षों में पहली बार बर्फगोलों का खेल खेलकर आनंद लिया है। लेकिन जापान में एक डाकिया बर्फ पर ऐसा फिसला कि उसकी जान ही चली गई। उत्तरी कोरिया में बर्फ इतनी ज्यादा गिरने लगी है कि जलाशयों में जल की सतह पर बर्फ की इतनी मोटी परत जमने लगी है। अब इस देश में बर्फ के नीचे मछली पकडऩे के तरीकों के बारे में सोचा जा रहा है।

सवाल यह है कि इतनी ज्यादा बर्फ का गिरना अच्छे लक्षण हैं या बुरे। यह बड़ी अजीब बात है कि वायुमंडल का तापमान बढऩे की वजह से दुनिया में पहले की तुलना में आजकल अधिक हिमपात हो रहा है। यह बात हाल ही में रूसी शहर नोवोसिबिस्र्क में आयोजित एक सेमिनार में रूस के भूगोल संस्थान के निदेशक व्लादिमीर कॉत्लियकोव ने कही थी। वैज्ञानिक ने समझाया कि आजकल पृथ्वी पर तापमान बढऩे के कारण हवामंडल में नमी की मात्रा भी बढ़ गई है जिसके परिणामस्वरूप दुनिया के ठंडे जलवायु वाले क्षेत्रों में पहले से अधिक बर्फबारी हो रही है।

तापमान का असर
तापमान बढऩे से पृथ्वी के ध्रुवों पर और ऊंचे पर्वतों की चोटियों पर सदियों से जमे हुए ग्लेशियर बड़ी तेजी से पिघलने लगे हैं। लेकिन इसके साथ ही सर्दियों में पहले की तुलना में अधिक मात्रा में बर्फ गिरने लगी है। नए वर्ष, 2013 में यूरेशिया का अधिकांश भाग बर्फ से ढका हुआ था।

हमारी पृथ्वी पर इस 'सफेद चादर' की भूमिका बड़ी अहम है। यदि पृथ्वी पर बर्फ नहीं होती तो यहां अत्यधिक गर्मी पड़ती। दरअसल, यही बर्फ सूर्य की किरणों को परावर्तित करती है। इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि अंटार्कटिका की बर्फ हमारी पृथ्वी तक पहुंचने वाली सौर ऊर्जा का 90 प्रतिशत तक हिस्सा परावर्तित कर देती है।

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