हमारे देश में इस साल अब तक स्वाइन फ्लू की वजह से 400 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। डॉक्टरों का कहना है कि जब तक सर्दी का प्रभाव बना रहेगा, तब तक यह बीमारी भी बनी रहेगी। गर्मी बढ़ने पर ही स्वाइन फ्लू के वायरस का बढ़ना रुकता है।इस समय देश के 21 राज्यों में स्वाइन फ्लू (एन1एन1 इन्फ्लुएंजा) एक महामारी के रूप में लोगों की जान ले रहा है। इस साल 6000 हजार से ज्यादा लोग इससे प्रभावित हुए और 400 से ज्यादा को अपनी जान गंवानी पड़ी।
स्वाइन फ्लू के सबसे ज्यादा मामले मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, तेलंगाना, महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक और तमिलनाडु में सामने आए हैं। पिछले सप्ताह कोलकाता में 22 लोगों के इसके लक्षण मिले थे और 2 की मौत भी इसी की वजह से हुई।
स्वाइन फ्लू की शुरुआत
स्वाइन फ्लू के बारे में 2009 में पता चला था। उस वक्त इस बीमारी के मरीज कनाडा, मैक्सिको और अमेरिका में थे। 13500 लोग इससे प्रभावित थे और 95 की मृत्यु हुई थी। उस वर्ष भारत में स्वाइन फ्लू का एक ही मामला सामने आया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एन1एन1 वायरस भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में काफी तेजी से फैला है। यह बीमारी हवा की वजह से फैलती है। और एक मरीज से दूसरे मरीज तक भी इसका संक्रमण होता है। स्वाइन फ्लू से बचने के लिए सावधानी और समझदारी दोनों ही जरूरी हैं।
एच1एन1 फ्लू क्या है
यह टाइप-ए प्रकार का इन्फ्लुएंजा वायरस है। इसे स्वाइन फ्लू इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह सूअरों में पाया जाता है। यह बीमारी अधिकांशत: उन्हीं लोगों को होती थी, जिनका संपर्क सूअरों से होता था। कई देशों में सूअर पाले और खाए भी जाते हैं। इस वजह से यह बीमारी इंसानों में पहुंची है। यही वजह है कि यह इंसानों के जरिये तेजी से फैली।
किसे हो सकता है संक्रमण
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के इन्फ्लुएंजा के अनुसार यह संक्रमण किसी भी व्यक्ति हो सकता है। लेकिन जिन लोगों को अस्थमा, सीओपीडी, डायबिटीज, हृदय रोग या ऑटो इम्यून डिसऑर्डर हो, उन्हें यह संक्रमण होने का खतरा सबसे ज्यादा होता है। लीवर और किडनी की बीमारियों से ग्रस्त मरीज और गर्भवती महिला को भी इस संक्रमण का खतरा ज्यादा रहता है।
स्वाइन फ्लू के लक्षण क्या हैं
स्वाइन फ्लू और मौसमी फ्लू के लक्षण काफी हद तक एक समान ही होते हैं। स्वाइन फ्लू से पीड़ित मरीजों को बुखार, खांसी, गले में खराश, सिर दर्द, शरीर में दर्द रहता है। कुछ लोगों को जुकाम, ठंड लगना, फटीग, डायरिया और उल्टियां भी होती हैं।यदि सांस लेने में तकलीफ हो, पेट और सीने में दर्द हो तो यह भी स्वाइन फ्लू का लक्षण हो सकता है। ऐसी स्थिति में तुरंत अपने फिजिशियन डॉक्टर को इसके बारे में अवगत कराना चाहिए। बच्चों में यदि स्किन नीली सी दिखने लगे, पानी न पिया जाए, सांस लेने में तकलीफ हो, नींद जल्दी न खुले, बुखार और खांसी हो तो तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
यदि स्वाइन फ्लू हो जाए तो
स्वाइन फ्लू की पुष्टि होने पर टैमीफ्लू या उसी प्रकार का एंटीवायरल दवा लेनी चाहिए। संक्रमण होने के दूसरे दिन से दवाओं का असर दिखाई देता है। पिछले साल प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया था कि संक्रमण होन के दो दिनों के भीतर टैमीफ्लू लेने से मौत की संभावना को 50 प्रतिशत तक घटाया जा सकता है।
इस रिपोर्ट को 38 देशों के 29000 मरीजों पर किए गए शोध के बाद प्रकाशित किया गया था। शोध में पता चला था कि जिन मरीजों ने टैमीफ्लू दवा नहीं ली थी, उनकी मौत ज्यादा हुई, जबकि इस दवा को लेने वाले मरीजों की मृत्युदर 25 प्रतिशत कम थी।
स्वाइन फ्लू से बचने के लिए क्या करना चाहिए
स्वाइन फ्लू से बचने के लिए स्वच्छता बहुत जरूरी है। कोशिश करें कि किसी भी खुली और सार्वजनिक चीज को छूने के बाद और किसी से हाथ मिलाने के बाद हाथों को अच्छी तरह से धोएं। यदि आप सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करते हैं तो नाक और मुंह को ढंककर रखें।
दफ्तर में फोन, प्रिंटर और दरवाजों को छूने के बाद हाथ धोना हितकर रहेगा। जो लोग खांस रहे हों या छींक रहे हों, उनसे दूरी बनाकर रखें।संभव हो तो ऐसे लोगों से छह फीट की दूरी बनाए रखें। इसी तरह से यदि किसी सार्वजनिक स्थल पर आपको छींक आए या खांसी आए तो मुंह और नाक को रूमाल से ढंक लें। बिना धुले हाथों से अपनी आंख, नाक तथा मुंह को न छुएं।
स्वाइन फ्लू के सबसे ज्यादा मामले मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, तेलंगाना, महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक और तमिलनाडु में सामने आए हैं। पिछले सप्ताह कोलकाता में 22 लोगों के इसके लक्षण मिले थे और 2 की मौत भी इसी की वजह से हुई।
स्वाइन फ्लू की शुरुआत
स्वाइन फ्लू के बारे में 2009 में पता चला था। उस वक्त इस बीमारी के मरीज कनाडा, मैक्सिको और अमेरिका में थे। 13500 लोग इससे प्रभावित थे और 95 की मृत्यु हुई थी। उस वर्ष भारत में स्वाइन फ्लू का एक ही मामला सामने आया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एन1एन1 वायरस भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में काफी तेजी से फैला है। यह बीमारी हवा की वजह से फैलती है। और एक मरीज से दूसरे मरीज तक भी इसका संक्रमण होता है। स्वाइन फ्लू से बचने के लिए सावधानी और समझदारी दोनों ही जरूरी हैं।
एच1एन1 फ्लू क्या है
यह टाइप-ए प्रकार का इन्फ्लुएंजा वायरस है। इसे स्वाइन फ्लू इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह सूअरों में पाया जाता है। यह बीमारी अधिकांशत: उन्हीं लोगों को होती थी, जिनका संपर्क सूअरों से होता था। कई देशों में सूअर पाले और खाए भी जाते हैं। इस वजह से यह बीमारी इंसानों में पहुंची है। यही वजह है कि यह इंसानों के जरिये तेजी से फैली।
किसे हो सकता है संक्रमण
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के इन्फ्लुएंजा के अनुसार यह संक्रमण किसी भी व्यक्ति हो सकता है। लेकिन जिन लोगों को अस्थमा, सीओपीडी, डायबिटीज, हृदय रोग या ऑटो इम्यून डिसऑर्डर हो, उन्हें यह संक्रमण होने का खतरा सबसे ज्यादा होता है। लीवर और किडनी की बीमारियों से ग्रस्त मरीज और गर्भवती महिला को भी इस संक्रमण का खतरा ज्यादा रहता है।
स्वाइन फ्लू के लक्षण क्या हैं
स्वाइन फ्लू और मौसमी फ्लू के लक्षण काफी हद तक एक समान ही होते हैं। स्वाइन फ्लू से पीड़ित मरीजों को बुखार, खांसी, गले में खराश, सिर दर्द, शरीर में दर्द रहता है। कुछ लोगों को जुकाम, ठंड लगना, फटीग, डायरिया और उल्टियां भी होती हैं।यदि सांस लेने में तकलीफ हो, पेट और सीने में दर्द हो तो यह भी स्वाइन फ्लू का लक्षण हो सकता है। ऐसी स्थिति में तुरंत अपने फिजिशियन डॉक्टर को इसके बारे में अवगत कराना चाहिए। बच्चों में यदि स्किन नीली सी दिखने लगे, पानी न पिया जाए, सांस लेने में तकलीफ हो, नींद जल्दी न खुले, बुखार और खांसी हो तो तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
यदि स्वाइन फ्लू हो जाए तो
स्वाइन फ्लू की पुष्टि होने पर टैमीफ्लू या उसी प्रकार का एंटीवायरल दवा लेनी चाहिए। संक्रमण होने के दूसरे दिन से दवाओं का असर दिखाई देता है। पिछले साल प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया था कि संक्रमण होन के दो दिनों के भीतर टैमीफ्लू लेने से मौत की संभावना को 50 प्रतिशत तक घटाया जा सकता है।
इस रिपोर्ट को 38 देशों के 29000 मरीजों पर किए गए शोध के बाद प्रकाशित किया गया था। शोध में पता चला था कि जिन मरीजों ने टैमीफ्लू दवा नहीं ली थी, उनकी मौत ज्यादा हुई, जबकि इस दवा को लेने वाले मरीजों की मृत्युदर 25 प्रतिशत कम थी।
स्वाइन फ्लू से बचने के लिए क्या करना चाहिए
स्वाइन फ्लू से बचने के लिए स्वच्छता बहुत जरूरी है। कोशिश करें कि किसी भी खुली और सार्वजनिक चीज को छूने के बाद और किसी से हाथ मिलाने के बाद हाथों को अच्छी तरह से धोएं। यदि आप सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करते हैं तो नाक और मुंह को ढंककर रखें।
दफ्तर में फोन, प्रिंटर और दरवाजों को छूने के बाद हाथ धोना हितकर रहेगा। जो लोग खांस रहे हों या छींक रहे हों, उनसे दूरी बनाकर रखें।संभव हो तो ऐसे लोगों से छह फीट की दूरी बनाए रखें। इसी तरह से यदि किसी सार्वजनिक स्थल पर आपको छींक आए या खांसी आए तो मुंह और नाक को रूमाल से ढंक लें। बिना धुले हाथों से अपनी आंख, नाक तथा मुंह को न छुएं।
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