आज सुबह जब मैं दफ्तर आ रहा था तो एक घटना देखने को मिली। घटना ऐसी कि जिसे देखकर गुस्सा भी आया और फिर ये लगा कि आखिर दोषी किसे मानें। हुआ यूं कि एक ऑटो वाले ने एक कार वाले को साइड नहीं दिया और आगे बढ़ गया। बदले में उस बदमिजाज कार वाले का दिमाग गरम हो गया। एसी गाड़ी में बैठने के बाद भी गरम दिमाग। उसने आगे जाकर गाड़ी ऑटो के आगे लगा दी और उतरकर ऑटो वाले को गालियां देने लगा और जब इतने से भी उसका मन नहीं भरा तो ऑटो वाले को पीटना शुरू कर दिया। बेचारा ऑटो वाला पिटता रहा। समझ नहीं आ रहा था कि साइट न देना गुनाह है या उस आदमी का फ्रस्टेशन। मुझे तो लग रहा था कमबख्त वह आदमी घर से ही ऐसे निकला होगा। बीवी से झगड़ा हुआ होगा और नाश्ता नहीं किया होगा या फिर ऑफिस का कोई काम पेंडिंग होगा जिसे वो जल्दी पहुंचकर पूरा करना चाह रहा होगा और रास्ते की सारी अड़चने उसे गुस्सा दिला रही होंगी।
लेकिन ऐसे लोग ही खुद के लिए भी खतरा होते हैं। इसलिए इन्हें मेडिटेशन की जरूरत है। ईश्वर इन्हें सदबुद्धि दे।
ईश्वर इन्हे सदबुद्धी दे ।
जवाब देंहटाएंजो व्यक्ति भी गुस्से और मारपीट के द्वारा अपनी सत्ता स्थापित करना चाहता है, समझो वह हीन भावना का शिकार है और बेहद कमजोर इंसान है। छोटा पर अच्छा उदाहरण।
जवाब देंहटाएंउसका यह कृत्य बेशक गलत है. लेकिन आटो वाले ही सबसे अधिक खराब चलाते हैं और दुर्घटनाओं का कारण भी होते हैं. जब चाहे ब्रेक, जहां चाहे उधर मोड़ना बिना किसी सिग्नल के...
जवाब देंहटाएंबिल्कुल ठेक देखा आपने अनिल जी ...और रोड रेज की बढती घटनाएं ही इसका प्रमाण हैं
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
aapke aalekh se sahmat.
जवाब देंहटाएंDr.Smt.Ajit Gupta ki baat bilkul sahi hay.
गुस्सा निकालने के लिए आदमी हमेशा अपने से कमजोर को ही क्यूं चुनता है। और फिर जोर-आजमाइश से तो किसी मसले का हल निकालने की बात कम से कम मेरे गले नहीं उतरती।
जवाब देंहटाएं