मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

खामोशियां हैं आसपास और कुछ सवाल भी

खामोशियां हैं आसपास और कुछ सवाल भी
कुछ रास्ता है सीधा सा और कुछ है आसपास जाल भी
मुकद्दर ले जा रहा है जाने कहा और किस ओर है मंजिल
धुधली हैं राहें….दूर होता है साहिल…..

काश कोई संभाले कुछ देर को ही सही
इस वक्त और दूर जाते लम्हों की कहानी..... 

दूरियां हैं साथ और कुछ मुश्किलें भी
राहों पे बिखरे शूलों की कुछ अटकलें भी
बेतहाशा भाग रहे हैं किस शमा की चाह में
अब तो चाहूं साथ इस अजनबी राह में
काश कोई आए और संभाले सही
जीवन की डोर और बीतते वक्त की कहानी.....



कवियत्रीः सपना गुरु, पेशे से विज्ञान शोधकर्ता हैं।

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