शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

ज्वलंत विषय

ज्वलंत विषय ढूंढ़ा ताकि उस पर कुछ लिखूं
पाया हर चीज़ ज्वलनशील है

कभी देश तो कभी जनता जलती है
कभी शांति तो कभी नैतिकता धधकती है

सर पर टोपी हाथ में सीधी छड़ी वाला
वह युग बीत गया
तन पर सूट, हाथ में बंदूक लिए
शासक वह युग लूट गया

पाठकों ने कहा
यह तो घिसा पिटा विषय है
इस पर न लिखने को कुछ शेष है

लेकिन उन्हें न यह पता
यह तो अवशेष है
मूल बातें हैं लापता

भव्य समारोह की तैयारी थी
गोरी काली कन्याओं की सभा लगाई थी
आपस में गिट पिट कर
सुंदरी का खिताब किसी ने जीत लिया

सारी जनता बौखलाई सी
उमड़ी भीड़ देने बधाई
क्या पता उसे यह ताज किसलिए दिया गया
संस्कृति अपनी मर चुकी
उसी के शोक पर मनाई जा रही खुशी।

कहीं देश फैशन परस्त, तो कहीं पस्त है
कहीं नेताओं की तानाशाही
तो कहीं जनता की किस्मत अस्त है
इसी उलझन में फंसा
ज्वलंत विषय न ढूंढ़ सका।

नीहारिका जी की रचना

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