पूछो नहीं नाम मेरा
मैं बड़ा अभागा हूं
मैं लक्ष्यहीन पंथहीन
राहों की छाया हूं
मैंने कितने अनर्थ किए
कार्य कितने व्यर्थ किए
स्वार्थ अपने पूर्ण करने को
औरों के हक छीनने को
मनुष्य जन्म लेकर मैं आया हूं
विकट संकट की प्रतिछाया हूं
निद्रा मेरी अब टूटी है
जब जीर्ण शीर्ण संस्कृति बची है
चारों ओर अशांति मची है
देश अब इन भूतों के लिए खंडहर शेष
यह देश का अब चिन्ह विशेष
कुरूप अब एक काया हूं
क्योंकि मैं मनुष्य जन्म लेकर आया हूं।
नीहारिका जी की रचना
मैं बड़ा अभागा हूं
मैं लक्ष्यहीन पंथहीन
राहों की छाया हूं
मैंने कितने अनर्थ किए
कार्य कितने व्यर्थ किए
स्वार्थ अपने पूर्ण करने को
औरों के हक छीनने को
मनुष्य जन्म लेकर मैं आया हूं
विकट संकट की प्रतिछाया हूं
निद्रा मेरी अब टूटी है
जब जीर्ण शीर्ण संस्कृति बची है
चारों ओर अशांति मची है
देश अब इन भूतों के लिए खंडहर शेष
यह देश का अब चिन्ह विशेष
कुरूप अब एक काया हूं
क्योंकि मैं मनुष्य जन्म लेकर आया हूं।
नीहारिका जी की रचना
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें