दो मिट्टी इन हाथों में
यह मिट्टी मेरे भारत की है
होती थी जो कभी वीरों का तिलक
वो धूल अब आंखों की किरकिरी बनकर पड़ती है
सुगंध से जिसके लोग न अघाते थे
अब उस मिट्टी को ढंककर लोग पक्की सड़कें बनवाते हैं
और दौड़ लगाते हैं इस छोर से उस छोर तक
जहां न मिट्टी की झलक न हरियाली है
केवल भारत के इतिहास पर
मिट्टी पड़ी नज़र आती है।
नीहारिका जी की रचना
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