शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

वृक्ष

जीवन का आधार दिया है
सुयोग्य तुम्हे विकास दिया है
हरियाली ही जीवन है यह मंत्रोच्चार दिया है

कांटों का दुख सहकर
फूल तुमपर बरसाए हैं
समान दृष्टि डाली सबपर
और समानता का नया आयाम दिया है

पर तुमने हमसे सब छीना है
चोट पर चोट करते रहे सदियों से तुम
क्रूरता की सीमा भी लांघी तुमने
दर्द की विभीषिका को मौन रहकर
स्वीकार हमनें किया है

अब वक्त हमारा आया है
जीवन का अधिकार हम भी छीनेंगे
हद की सीमाएं लांघी तुमने
तो हम भी हर सीमाएं तोड़ेंगे।

नीहारिका जी की रचना

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