शनिवार, 6 जून 2015

भूजल का सर्वाधिक दोहन करता है हमारा देश

हमारे देश में भूजल स्‍तर गिर रहा है और हम दुनिया के उन देशों की सूची में सबसे ऊपर हैं, जो भूजल का सबसे ज्‍यादा दोहन करते हैं। यह हम नहीं खुद केंद्र सरकार मान चुकी है। पिछले वर्ष संसद में पेश केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट में बताया गया था देश के 56 फीसदी कुओं का भूजल स्‍तर गिरा है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि देश के 6607 मूल्यांकन इकाइयों (ब्लॉक, मंडल, तालुका) में 15 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के 1071 इकाइयों में भूजल का स्तर अत्यधिक दोहन के कारण गिरा है।

भारी किल्‍लत
वहीं तेजी से गिरते भूजल स्तर पर वैज्ञानिकों ने भी कई बार चिंता जताई है। उनका कहना है कि उत्तर भारत में यह स्तर तेजी से गिरता जा रहा है और लाखों लोगों के लिए इसके गंभीर परिणाम होंगे। नेचर पत्रिका में भी शोधकर्ताओं ने लिखा है कि सिंचाई और दूसरे उपयोग के लिए के लिए पानी की खपत सरकारी अनुमान से कहीं ज्‍यादा तेजी से बढ़ी है। इस कारण कृषि उत्पादन ठप हो सकता है और पीने के पानी की भयंकर किल्लत हो सकती है।
जल संसाधन पर एक नजर
हर साल गर्मी का पारा बढ़ने के साथ ही देश के सभी हिस्सों में जलसंकट गहराने लगता है। शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण क्षेत्र, पानी की समस्या दोनों जगह समान रूप से गंभीर होती जा रही है। भारत जैसे विशाल देश में सभी को साफ और शुद्ध पेयजल मुहैया कराना एक बड़ी चुनौती जैसा ही है। भारत दुनिया की लगभग 17 फीसदी आबादी को समेटे हुए है जबकि देश में पानी की उपलब्धता मात्र 4 फीसदी है। यदि हम पूरे विश्व की बात करें तो धरती का 70 प्रतिशत भाग जलमग्न है लेकिन इनमें से पीने लायक पानी की मात्रा महज 3 प्रतिशत है इसमें से भी 2 प्रतिशत पानी महासागरों में ग्लेशियर के रूप में है जिससे मानव जाति के हिस्से में मात्र 1 प्रतिशत पानी ही उपयोग के लिए उपलब्ध है।
पानी पर निर्भरता
पानी पर हमारी निर्भरता बढ़ती जा रही है और इसके स्रोत घटते जा रहे हैं। हमें पेयजल, दैनिक दिनचर्या, कृषि कार्यों और उद्योग धंधों में पानी की आवश्यकता होती है जिनकी पूर्ति के लिए हम उपलब्ध जल संसाधनों के साथ-साथ भूजल का भी जमकर दोहन कर रहे हैं। लगातार हो रहे दोहन से भूजल का स्तर प्रतिवर्ष 1 से 1.5 प्रतिशत की दर से नीचे जा रहा है। परिणामस्वरूप जल स्रोत सूखने लगे हैं और जलसंकट गहराने लगा है।
जल प्रबंधन की कमी
हमारे देश में आज भी जल संरक्षण और जल प्रबंधन की दिशा में ठोस प्रयास नहीं हो रहे हैं। जल संरक्षण के नाम पर केवल नदियों पर बांध बनना समस्या का हल नहीं है बल्कि भूजल स्तर बढ़ाने के प्रयास भी होने चाहिए। भारत में कई राज्यों में भूजल चिंताजनक स्थिति में पहुंच गया है।
ग्लोबल वार्मिंग
ग्लोबल वार्मिंग के चलते जलवायु में निरंतर परिवर्तन हो रहा है। जिसके कारण वर्षा कभी कम तो कभी ज्यादा हो जाती है। ऐसे में वर्षा जल का उचित प्रबंधन करना जरूरी हो गया है। उत्तर भारत की नदियों में पानी ग्लेशियर से आता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं जिसमें भविष्य में नदियों के सूखने का खतरा उत्पन्न हो गया है। वहीं मध्य भारत में कुछ ही नदियां वर्षभर बहती रही है और ज्यादातर बरसाती नदियां गर्मियों में दम तोड़ देती है। इसलिए नदियों के पानी को बचाना जरूरी हो गया है।
ट्यूबवेल से पानी का दोहन
पानी पर हमारी सबसे अधिक निर्भरता कृषि कार्यों के लिए होती है। पहले खेतों में सिंचाई पारंपरिक और प्राचीन तरीकों से होती थी। अब हम खेतों में सिंचाई के लिए ट्यूबवेल पंप का उपयोग कर रहे हैं जिससे धरती की गहराई में जमा पानी निकल रहा है और भूजल का स्तर भी घट रहा है। यहां इस बात का उल्‍लेख करना जरूरी है कि हमारे देश में कुल उपयोग किए जा रहे पीने योग्‍य पानी का 42 (2011 की जनगणना आंकड़ों के अनुसार) प्रतिशत हिस्‍सा हैंडपंप और ट्यूबवेल से निकाला जाता है। इतना ही नहीं एक ग्‍लोबल रिपोर्ट के भूजल का दोहन करने वाले दुनिया के 15 देशों में भारत सबसे ऊपर है।
सबसे ज्‍यादा खपत वाले क्षेत्र
केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार भारत में भूजल का सर्वाधिक दोहन कृषि क्षेत्र द्वारा किया जाता है। इसके बाद घरेलू और फिर औद्योगिक क्षेत्र का नंबर आता है।
कितना पानी चाहिए
रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2050 तक भारत को हर साल 1,180 बिलियन क्‍यूबिक मीटर (बीसीएम) पानी की जरूरत होगी। वर्तमान में हमारे पा 1,123 बीसीएम पानी उपलब्‍ध है। इसमें से 690 बीसीएम पानी नदी-तालाबों से मिलता है और 433 बीसीएम पानी भूमिगत स्रोतों से मिलता है।
बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में स्‍पष्‍ट किया है कि यदि देश में वाटर रिचार्ज प्रणाली का उपयोग बढ़ाया नहीं गया तो पानी की मांग को पूरा कर पाना लगभग असंभव हो जाएगा।
किसे कहते हैं भूजल स्‍तर
भूजल उस पानी को कहा जाता है जो बारिश और अन्य स्रोत्रों के कारण जमीन में चला जाता है और इकट्ठा होता रहता है। गौरतलब है कि उत्तर भारत में भूजल स्तर 2002 से 2006 के बीच हर साल चार सेंटीमीटर तक नीचे आया है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें