पास थे कभी, दूर न होने के लिए,
एक घर हमने भी बनाया था अपने लिए,
चुनकर लाए थे खुशियों के एक-एक फूल,
रंग भरे थे सपनों की रंगीन कूची से,
आज भी देखती हूँ उस ख्वाब की दुनिया के अवशेष
जिसकी रंगहीन दीवारें आज भी कुछ यादों को
सहेजे हुए है किसी बदरंग तस्वीर की तरह।
- Niharika
इस प्रस्तुति के भाव अच्छे हैं.
जवाब देंहटाएंnihu vakai bahut pyari kavita hain....
जवाब देंहटाएंक्या बात है दोस्त। लिखते रहिए। राजस्थान की कई बातें अब पता चल रही हैं।
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